रविदास गरीब परिवार से था और संयुक्त परिवार था। वे दो भाई और तीन बहन थे, उनमें रविदास सबसे छोटा था। आर्थिक तंगी के कारण कोई भी अच्छी तरीका से सिवाय रविदास को छोड़कर नहीं पढ़ाई कर सका था ।रविदास के माता पिता किसान थे और उनके पास खेती के लिए काफी जमीन नहीं था। किंतु रविदास का बचपन गांव में बहुत सुखद था। गांव में इसके बहुत सारे मित्र थे। उनके साथ में बहुत खेलता और मस्ती करता था। गांव का नाम कंचना था तथा पेड़ पौधों से हरा भरा था। गांव के दक्षिण में घना जंगल था। उस जंगल का नाम घोरा था। उस जंगल को बहुत ही भयानक माना जाता था वहां कोई भी नहीं जाता था क्योंकि जो भी इस जंगल में एक बार चला जाता था वह वापस नहीं आता था। लोग उस जंगल से बहुत ही भयभीत रहते थे।
बहुत से घर परिवार के लोग अपने बच्चों को उस गांव से दूर शहर में भेज देते थे, ताकि उनके परिवार का बच्चा भूल से भी उस जंगल में ना जाए और उससे बचा रहे। रविदास बहुत ही शांत, ईमानदार और मेहनती था। उसके गांव में बहुत से जमींदार और साहूकार थे। उस गांव में भ्र्स्ट लोग ज्यादा थे । वहां की आम गरीब जनता को दूसरों के खेत में काम करना पड़ता था तथा पैसा घटने पर साहूकार से उच्च दर पर पैसा लेना पड़ता था। कभी-कभी ऐसे परिवार के लोगों का जीवन कर्ज में डूब जाता था। और वह दूसरों के काम करते-करते मर जाते थे। इस तरह पूरे गांव में गरीबों की स्थिति अच्छी नहीं थी।
अभी रविदास महज 5 साल का हुआ था और उसका एडमिशन पास के गांव के सरकारी स्कूल में हो गया था। जब वह 3 साल बाद कक्षा तीन में गया तब से ही वह पढ़ाई को लेकर गंभीर हो गया । साथ ही उसने बहुत सारे अपने मित्र भी बनाए थे। वह लंच में तथा स्कूल के बाद घर पर बहुत खेलता था। वह बहुत मेहनती और पढ़ाई में मेधावी भी था। कक्षा 6 में प्रथम स्थान प्राप्त किया। तथा अब वह पूरे गांव में पढ़ाई के क्षेत्र में प्रसिद्धि पा चुका था। किंतु कुछ साथी छात्र तथा गांव के लोग उसके प्रति ईर्ष्या भाव रखने लगे वही सारे शिक्षक गण से बहुत मानते थे। परिवार मे सबसे छोटा होने के कारण तथा पढ़ाई में अच्छा होने के कारण सबसे लाडला था। रविदास अपने माता पिता से बहुत प्रेम करता था तथा उनके बातों को मानता था।
आर्थिक तंगी होने के बावजूद रविदास के माता पिता, रविदास का पढ़ाई के प्रति झुकाव, मेहनत और लगन को देखकर उसकी पढ़ाई को आगे जारी रखने की उसे अनुमति दी ताकि वह अपने जीवन को सुखी पूर्वक ब्यातीत कर सके तथा अपने परिवार को आर्थिक तंगी से मुक्त करा सके।
आज का दिन रविवार था तथा रविदास अपने खेतों में अपने पिता के साथ कुछ काम कर रहा था। रविदास को खेती करना अच्छा लगता था तो था वह बहुत बड़ा प्राकृतिक प्रेमी था। उससे पहाड़ों जंगलो तथा नया स्थानों पर घूमना बहुत अच्छा तथा रोचक लगता था। वह अक्सर अपने पिता से घोरा जंगल के बारे में पूछता था किंतु उसके पिता से उस जंगल के बारे में कुछ नहीं बताते थे, बस उस जंगल भी नहीं जाने के लिए कहते थे। चुकी रविदास बहुत ही जिज्ञासु,सत्य को जानने वाला था,इसलिए वह प्राय उस जंगल का रहस्य इतिहास और मान्यताओ के बारे में जानकारियां रखने का प्रयत्न करता रहता था। आज जो रविदास अपने पिता के साथ खेत में काम कर रहा था तब उस जंगल के रहस्य की सत्यता को जानने के जिद पर अड़ गया और अपने पिता से प्रार्थना करने लगा। इस कारण उसकी और उसके पिता के बीच ज्यादा कहा -सूनी भी हो गया।
इस तरह खेत से काम करके रविदास शाम को घर पर थका हारा आया और खाना खाकर रात को जल्द ही सो गए। इस रात्रि रविदास को अजीब स्वप्न आया। स्वप्न में वह देख रहा है कि घोरा जंगल से उसे आवाज आ रहा है। तथा वहां उसे आने के लिए कहा जा रहा है साथ ही उसे यह कहा जा रहा है कि तू पवित्र आत्मा फिर भी घोरा जंगल में आने से डरते हो। यह कह कर वह अजीब व्यक्ति ऊंचे आवाजों में हंसने लगा। इतने में रविदास करीब रात 2:00 बजे घबराकर उठ गया। उसके बाद उस रात उसे नींद नहीं आयी।अगले दिन अपने स्वप्न की सारी बात को माता पिता से कहा । इस पर उसके परिवार जन काफी चिंतित हुए। उसपर उसके पिता ने उससे कहा की कल खेत में उस जंगल के बारे में काफी चर्चा हम दोनों के बीच हुई थी इसलिए ऐसा स्वप्न आना स्वाभाविक है।
रविदास के प्रमुख मित्र :-- सोनू, सोहन, रोहन,गोलू, विवेक,रामू,छोटू आदि थे। अगला दिन रविदास स्कूल जाता है। वह अपने स्वप्न के बारे में दोस्तों को बताता है। इस पर उसके दोस्त उसे सावधानी से रहने के लिए कहते है। कुछ दिनों बाद वह उस स्वप्न को भूल जाता है।
रविदास के स्कूल में समय-समय पर कार्यक्रम होते रहते थे। इस समय उसके स्कूल मे शिक्षक दिवस का कार्यक्रम मनाया जा रहा था। सभी बहुत प्रसन्न चित्त मुद्रा मैं थे । अलग-अलग विद्यार्थी गाना. नृत्य,भाषण, रंगोली प्रस्तुत कर रहे थे। रविदास भी भाषण दिया। कविता के माध्यम से रविदास ने बहुत ही प्रेरणादायक भाषण दिया। जो इस प्रकार से है:--
यहां उपस्थित सभी महानुभावों को सादर प्रणाम और अभिनंदन। आज मैं ( रविदास ) जो बोलने जा रहा हूं उसका शुरुआत कविता के माध्यम से है । कविता का शीर्षक है:-- तू हौसला रख इस कदर की ।
तू हौसला रख इस कदर की,
तू हौसला रख इस कदर की,
जिंदगी की मुश्किले भी छोटी पड़ जाए।
कश्तियां डूबने की किसे परवाह है यहां,
की .. कश्तियां डूबने की किसे परवाह है यहां,
हम तो इन कश्तियों से, का हीं उपज हैँ।
तू, डगमगाएगा क्या, कि हमें,
तू, डगमगाएगा क्या, कि हमें ।
हमें क्या-क्या तू ऐसा वैसा समझा है।
ऐ जिंदगी, जा तू कह दे उन मुश्किलों से
ऐ जिंदगी, जा तू कह दे उन मुश्किलों से,
जब हमारा खुदा हमारे अंदर है,
तो क्या तू हमारे खुदा,
हौसला अफजाई से बड़ा है !!
तू हौसला रख इस कदर की,
तू हौसला रख इस कदर की,
जिंदगी की मुश्किलें भी छोटी पड़ जाए कि ,
हमारा खुदा हमारे साथ है।
ऐ मुश्किले,तू लाख करो कोशिश,
कि हमारा खुदा से वास्ता तुमसे पुराना है।
ऐ मुश्किले,तू लाख करो कोशिश,
कि हमारा खुदा से वास्ता तुमसे पुराना है।
देख हमारा हौसला इस कदर पक्का है,
तुम्हारी क्या औकात की,
हमारा खुदा तुमसे बड़ा है।
अंत में सभी जनमानस को कहता हूं कि,
ऑल पावर इज विदीन यू
यू कैन डू एनीथिंग एंड एवरीथिंग
बिलीव इन थॉट्स।
अल्टीमेट पावर इन विद एवरी सोल
नीड इज ओनली टू एक्टिवेट इट
एंड यूज़ इट प्रॉपरली।
सफलता की राह कठिन अवश्य होती है,पर असंभव नहीं होती है। जो मेहनत करते हैं, उन्हें सफलता मिल जाती है। व्यक्ति को चाहिए कि वह मेहनत सही दिशा में एक गोल तय करके करे। सभी व्यक्तियों के सफलता का मायने अलग अलग होते है। एक विद्यार्थी के लिए सफलता का मायने उसका सफल कैरियर होता है, तो एक शादीशुदा का सफलता का मायने, सुखद वैवाहिक जिंदगी होता है तथा एक वृद्ध का सफलता का मायने मान सम्मान तथा सहयोगी वातावरण होता है।
हमें सफलता प्राप्त करने के लिए किसी और से प्रतिस्पर्धा नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से खुद में ईष्या तथा हिन भावना उत्पन्न होता है , इससे खुद को ही नुकसान होता है। हमें प्रतिस्पर्धा खुद में खुद से करनी चाहिए, जिससे की अपने व्यक्तित्व मे निखार आ सके। सफलता की राह सघ्न नहीं बल्कि विरल होती है , हमें उस विरल राह पर चलने की साहस होनी चाहिए। सफलता प्राप्त करने के लिए हमारे पास धैर्य,संयम, अनुशासन गुण होने चाहिए । दूसरों का देखा देखी ना करके स्वविवेक से काम करना चाहिए।
धन्यवाद।
इतना कहकर रविदास ने अपना भाषण समाप्त किया ।
क्रमशः
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