रविदास का भाषण सुनकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए । सभी गुरुजनों ने रविदास का बहुत तारीफ किया । सौभाग्यवश शिक्षक दिवस कार्यक्रम में स्कूल की ओर से एक ऋषि को बुलाया गया था, जो एक ख्याति प्राप्त अध्यात्मिक गुरु थे।रविदास का भाषण सुनकर वे मोहित हो गए। उनका नाम स्वामी आनंद स्वरूपा था। कार्यक्रम के समाप्ति के बाद वे रविदास से भेंट किए तथा अंत में जाते समय वे रविदास से कहते हैं कि वास्तविक सुख इस भौतिकता मे नहीं बल्कि आध्यात्मिक दुनिया में है ।इस मुलाकात का प्रभाव रविदास के मन पर काफ़ी गहरा पड़ा तथा उसका झुकाव अध्यात्म की ओर बढ़ने लगा।
अब वह कक्षा 10 मे प्रवेश कर गया था । उसका एक मात्र लड़की सखा माधवी थी, जिससे वह सच्चा प्रेम करता था। रविदास ने माधवी से अपने प्रेम के बारे में अवगत कराया परन्तु माधवी ने प्रेम निवेदन को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह किसी और से प्रेम करती थी। इससे रविदास को बहुत दुख हुआ और वह अकेलापन महसूस किया।
कक्षा 10 में जब शिक्षक दिवस कार्यक्रम हुआ तो उसने अपना भाषण दिया । चुकी शिक्षकों के प्रति उसका प्रेम अद्वितीय था, इसलिए वह अपना विचार इस दिन प्रायः रखता था।
इस भाषण में उसने स्वामी विवेकानंद के जीवन के प्रेरक प्रसंगो तथा उनके अनमोल विचारों को वहां उपस्थित प्रियजनों के सामने रखा जो इस प्रकार था :--
स्वामी विवेकानंद ने ध्यान से मन को मजबूत बनाने की प्रेरणा दी, क्योंकि मजबूत मन ही धर्म का विकास कर सकता है।और धर्म समाज में जागृति लाकर शक्ति प्रदान कराती है। प्राप्त शक्ति को सेवा कार्य में लगाना चाहिए, तभी शक्ति शाश्वत बनी रहती है अन्यथा यह भोग में उपयोग से नष्ट हो जाती है। इसलिए स्वामी विवेकानंद ने 1847 मे रामकृष्ण मिशन का स्थापना समाज सेवा हेतु किया।
स्वामी विवेकानंद के जीवन के कुछ प्रेरक घटनाएं, जो जीवन में बड़े बदलाव ला सकते हैं, वे इस प्रकार है :--
प्रथम घटना :-- जब नरेंद्र अपने संस्कृति का प्रतिनिधित्व बनकर शिकागो जा रहे थे, तो वे मां शारदा से इसकी अनुमति लेने जाते हैं। मां शारदा करती हैं, नरेंद्र मुझे वह चक्कू दो। नरेंद्र चक्कू मां शारदा के हाथ में देते हैं। मां शारदा ने इसके बाद नरेंद्र को शिकागो जाने की अनुमति दे दी। नरेंद्र भोले की बिना किसी परीक्षा के आपने इतने बड़े कार्य के लिए अनुमति दे दिया, कैसे?
मां शारदा ने कहा :-- तुम चक्कू देते समय स्वयं चक्कू का तेज धार वाला भाग पकड़ा और मुझे लकड़ी वाला भाग दिया। यह कार्य साधारण व्यक्ति का नहीं हो सकता है। तुम्हारा यही परीक्षा था और तुम इसे सफल हुए। जो इतने छोटे कार्य में दूसरों का हित देख सकता है, वह अपनी संस्कृति को प्रसारित करने मैं सभी तरह से स्वतंत्रता है।
इस घटना से यह सीख मिलती है कि निस्वार्थ भाव से "देने की प्रवृत्ति " व्यक्ति को सफल अवश्य बनाती है।
दूसरी घटना इस प्रकार है :--
शिकागो सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद कुछ समय पहले पहुंच गए। उन्हें कुछ लोग देखकर पूछे :--
Hello, how are you?
स्वामी विवेकानंद हाथ जोड़कर बोलते हैं :-- नमस्कार।
यह सुनकर उन्हें लगता है कि शायद मुझे इंग्लिश नहीं आती है। उनमें से एक को थोड़ा थोड़ा हिंदी आती थी।
उसने पूछा:-- कैसे हैं,आप?
स्वामी जी ने जवाब दिया :== I am fine, thank you.
यह सुनकर भी हैरान होकर पूछे :-- जब हम आपसे इंग्लिश में बात किए तो आपने हिंदी में जवाब दिया और जब हम हिंदी में बात किए तो आप इंग्लिश में बात किए। यहां हमें समझ नहीं आया।
स्वामी जी ने कहां :-- जब आप अपनी मातृभाषा का सम्मान कर रहे थे तो मैंने अपनी मातृभाषा का सम्मान किया। और जैसे ही आपने मेरी मातृभाषा का सम्मान किया तो मैंने आपके मातृभाषा का सम्मान किया।
हमें इस घटना से यह सीख मिलती है कि जो अपनी संस्कृति से जुड़ा रहता है और साथ में दूसरों की संस्कृति का सम्मान करता है। दुनिया उसका सम्मान सदैव करती है।
तीसरी घाटना :--
शिकागो सम्मेलन से कुछ समय पहले एक कपल ने स्वामी जी को देखा तो वे उन्हें, वहां उपस्थित सभी लोगों से भिन्न लगे। स्वामी जी पगड़ी और भगवा वस्त्र लूंगी जैसा लपेटे हुए पहने थे। वे कपल स्वामी जी से बोले :-- क्या आप जेंटलमैन देखने के लिए कोट -पेंट नहीं पहनते हैं? स्वामी जी कहते हैं:-- आपके सभ्यता में कपड़े आपको महान बनाते हैं परंतु हमारी सभ्यता में चरित्र महान बनाता है।
यह घटना हमें क्या सिखाती है कि अच्छा कपड़ा कुछ समय के लिए अस्थाई रूप से हमारे ब्यक्तित्व को आदर्श दिखा पाता है। वही चरित्र स्थाई रूप से हमारे ब्यक्तित्व को आदर्श बनाता है।
स्वामी जी द्वारा 'मन की शक्तियों ' के बारे में महत्वपूर्ण बातें बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं :--
1. मन की शक्तियां इधर-उधर बिखरी हुई प्रकाश की किरणों के समान हैँ। जब उन्हें केंद्रीय भूत किया जाता है, तब वे सब कुछ आलोकित कर देती हैं। यही ज्ञान का हमारा एकमात्र उपाय है।
2. हमने देखा कि जिस मनुष्य ने स्वयं पर अधिकार प्राप्त कर लिया है, उसके ऊपर बाहर की कोई भी चीज अपना प्रभाव नहीं डाल सकती, उसके लिए किसी प्रकार की दास्तां शेष नहीं रह जाती। उसका मन स्वतंत्र हो जाता है। और केवल ऐसा ही पुरुष संसार में रहने योग्य है।
3. हमारे मन की शक्तियों की एकाग्रता ही हमारे लिए ईश्वर दर्शन का एकमात्र साधन है। यदि तुम एक आत्मा को ( अपनी आत्मा को ) जान सको तो तुम भूत भविष्य वर्तमान सभी आत्माओं को जान सकोगे। इच्छा शक्ति के द्वारा मन की एकाग्रता साधित होती है और विचार भक्ति,प्राणायाम इत्यादि विभिन्न उपायों से ये इक्छाशक्ति वशीकृत हो सकती है। एकाग्र मन मानो एक प्रदीप है, जिसके द्वारा आत्मा का स्वरूप स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
4. विचार हमारी कार्य प्रवृत्ति का नियामक है। मन को सर्वोच्च विचारों से भर लो। दिन पर दिन यही सब बात सुनते रहो, मास पर मास इसी का चिंतन करो। पहले= पहले सफलता नहीं मिली पर कोई हानि नहीं। ये असफलता तो बिलकुल स्वाभाविक है। ये मानव जीवन का सौंदर्य है। इन असफलताओं के बिना जीवन क्या होता? यदि जीवन में इस असफलता को जय करने की चेस्टा ना रहती तो जीवन धारण करने का कोई प्रयोजन ही ना रह जाता। उसके ना रहने पर जीवन का कवित्व कहां रहता? ये असफलता ये भूल रहने से हर्ज भी क्या? अतः बार-बार असफल हो जाओ तो भी क्या? कोई हानि नहीं। सहस्र बार इस आदर्श को हृदय में धारण करो और यदि सहस्र बार भी असफल हो जाओ, तो एक बार फिर प्रयत्न करो।
5. जिस मनुष्य का मनुष्य के अधीन होगा, निश्चय ही वह दूसरों के मन को भी अपने अधीन कर सकेगा। यही कारण है कि पवित्रता और नैतिकता सदा धर्म के विषय रहे हैं। पवित्र, सदाचारी मनुष्य स्वयं पर नियंत्रण रखता है। और सारे मन एक ही है, समस्टि -मन के अंश मात्र है।
6. यदि मन नियंत्रण से बाहर हो तो गुफा में रहने से कोई लाभ नहीं, क्योंकि वही मन सारा उत्पाद वहां भी उपस्थित करेगा। गुफा में हमें भी शैतान मिलेंगे, क्योंकि सारे शैतान मन में विद्यमान है। यदि मन पर नियंत्रण हो, तो हम जहां भी हो, वहीं गुफा प्राप्त कर सकते हैं।
धन्यवाद
इतना काम कर रविदास अपने भाषण को पूरा किया। कुछ समय बाद कक्षा 10 का परीक्षा उसका होने वाला था। परीक्षा से पहले विदाई समारोह कक्षा 10 का आयोजित हुआ। इस समारोह में कक्षा नौ के छात्रों ने कक्षा 10 के विद्यार्थियो का बिदाई किया। कक्षा 10 की परीक्षा भी रविदास ने अच्छा नंबर से पास किया। किंतु घर की आर्थिक स्थिति अच्छा नहीं होने के कारण रविदास भी आगे का पढ़ाई नहीं कर सका। पिछले 2 सालो से वह खेती कर रहा था। एक रात उसे जंगल का डरावना सपना आया। उसने सपना मे देखा :--
रविदास एक कमरे में बंद है तथा बंद कमरे में रविदास का दम घुट रहा है। कमरे का खिड़की भी बंद था। वह जोर-जोर से कभी दरवाजा तो कभी खिरविदास का अध्यात्म की ओर झुकाव ड़की को पीटता था और दरवाजा खोलने का आवाज लगाता था। परंतु उसका आवाज़ किसी ने नहीं सुना।डर कर रविदास मध्य रात्रि को ही उठ कर बैठ गया। ऐसा कहा जाता है कि इस तरह का स्वप्न किसी के परिवार पर काला जादू होने का संकेत दिखता है। स्वप्न में वह कमरा घने जंगलों के बीच में था।
क्रमशः
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