रविदास का भाषण सुनकर सभी मंत्रमुग्ध हो गए । सभी गुरुजनों ने रविदास का बहुत तारीफ किया । सौभाग्यवश शिक्षक दिवस कार्यक्रम में स्कूल की ओर से एक ऋषि को बुलाया गया था, जो एक ख्याति प्राप्त अध्यात्मिक गुरु थे।रविदास का भाषण सुनकर वे मोहित हो गए। उनका नाम स्वामी आनंद स्वरूपा था। कार्यक्रम के समाप्ति के बाद वे रविदास से भेंट किए तथा अंत में जाते समय वे रविदास से कहते हैं कि वास्तविक सुख इस भौतिकता मे नहीं बल्कि आध्यात्मिक दुनिया में है ।इस मुलाकात का प्रभाव रविदास के मन पर काफ़ी गहरा पड़ा तथा उसका झुकाव अध्यात्म की ओर बढ़ने लगा।
रविदास गरीब परिवार से था और संयुक्त परिवार था। वे दो भाई और तीन बहन थे, उनमें रविदास सबसे छोटा था। आर्थिक तंगी के कारण कोई भी अच्छी तरीका से सिवाय रविदास को छोड़कर नहीं पढ़ाई कर सका था ।रविदास के माता पिता किसान थे और उनके पास खेती के लिए काफी जमीन नहीं था। किंतु रविदास का बचपन गांव में बहुत सुखद था। गांव में इसके बहुत सारे मित्र थे। उनके साथ में बहुत खेलता और मस्ती करता था। गांव का नाम कंचना था तथा पेड़ पौधों से हरा भरा था। गांव के दक्षिण में घना जंगल था। उस जंगल का नाम घोरा था। उस जंगल को बहुत ही भयानक माना जाता था वहां कोई भी नहीं जाता था क्योंकि जो भी इस जंगल में एक बार चला जाता था वह वापस नहीं आता था। लोग उस जंगल से बहुत ही भयभीत रहते थे।